बलात्कार, यौन उत्पीडन, दहेज के कारण मृत्यु, अपराध और झूठी शिकायतें
A. समस्या संक्षिप में
बलात्कार के बढ़ते चले जाने का कारण है सबूतों का आसानी से दबाया जाना और भ्रष्ट, रिश्वत लिए जज, सरकारी वकील और पोलिस द्वारा उचित कदम नहीं उठाना. इसलिए, दोषी को सज़ा नहीं होती और बलात्कार होता रहता है. नए अपराधियों को सजा नहीं होती और आगे चलकर वे बड़े अपराध करते हैं और उनके आसपास के लोगों को भी अपराध करने की प्रेरणा मिलती है.
B. समाधान-ड्राफ्ट संक्षिप्त में
हम, आम-नागरिक मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री, जज आदि को मजबूर कर सकते हैं निम्नलिखित कानून भारतीय राजपत्र में डालने के लिए. हमें अपने नेताओं को केवल चुनना ही नहीं चाहिए, लेकिन ये भी सुनिश्चित करना चाहिए कि वे सत्ता में आने के बाद, प्रभावशाली तरीके से काम करें.
सभी कानून पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणली (टी.सी.पी.) मीडिया पोर्टल द्वारा बहुमत जनता की सह्मिति से आयेंगे.
B1. बलात्कार और झूठी शिकायतें कम करने के प्रशासनिक तरीके
B1.1. नागरिक-प्रामाणिक, पारदर्शी शिकायत-प्रस्ताव प्रक्रिया – ताकि शिकायतों / सबूत को दबाया नहीं जा सके
आज के सिस्टम से आम-नागरिक की दुर्दशा-
आज यदि किसी के पास बलात्कार या झूठी शिकायत करने वाले के विरुद्ध सबूत है और वो सबूत सरकार द्वारा बताये दफ्तर में जमा करता है, तो जमा करने के बाद वो स्वयं अपनी अर्जी देख नहीं सकता | इसलिए, उन सबूत वाली अर्जी को दबाना / छेड़-छाड करना बहुत आसान है | क्योंकि एक बार अर्जी जमा हो जाये तो, हम या दूसरे नागरिक अपनी ही अर्जी को देख नहीं सकते |
सरल सा उपाय –
इसीलिए, हमने ये प्रस्ताव किया है कि नागरिक-मतदाता को ये विकल्प होना चाहिए कि यदि वो चाहे, तो वो किसी भी दिन, कलेक्टर आदि सरकारी दफ्तर जाकर अपनी अर्जी, 20 रुपये प्रति पन्ने के एफिडेविट के रूप में प्रधानमंत्री की वेबसाईट पर नागरिक के वोटर आई.डी. नंबर के साथ स्कैन करवा सकेगा जिससे सभी उस एफिडेविट को बिना लॉग-इन शब्द-शब्द पढ़ सकेंगे.
संक्षिप्त में, ये मांग केवल एक लाइन की है कि किसी भी नागरिक के पास ये विकल्प हो कि वो अपनी एफिडेविट प्रधानमंत्री वेबसाईट पर, अपने वोटर आई.डी नंबर के साथ, स्कैन करवा सके ताकि उस एफिडेविट को सभी बिना लॉग-इन किये देख सकें. यदि ये सरकारी आदेश लागू हो जाता है, तो कोई बाबू, कोई मीडिया या अफसर उनकी अर्जी दबा नहीं सकता क्योंकि अर्जी दबाने का प्रयास करने पर, लाखों नागरिकों के समक्ष उसकी पोल प्रमाण सहित खुल जायेगी.
अधिक जानकारी के लिए ये लिंक देखें.
B1.2 जूरी मुकदमा – न्यायपूर्ण और थोड़े समय में फैसलों के लिए.
जूरी सिस्टम में जज के बदले क्रम-रहित (लॉटरी द्वारा) चुने गए 15 से 1500 नागरिक मामले का फैसला करते हैं और हर मामले के बाद नए लोग चुने जाते हैं.
जज मुकदमों का फैसला दशकों तक लटकाते रहते हैं क्यूंकि वे अमीर, आरोपित पक्ष के हाथों बिक जाते हैं. इसीलिए, बलात्कार के मुकदमों का फैसला लॉटरी द्वारा (क्रमरहित तरीके से) चुने गए 15 से 1500 नागरिकों को करना चाहिए जिसे जूरी सदस्य कहते हैं. ये नागरिक 30 और 55 वर्ष के बीच की आयु के होंगे और हर मामले के बाद नए लोग फैसला करेंगे. जूरी सदस्य को `जिला जूरी प्रशासक` नामक अफसर चुनेगा और ये जिला जूरी प्रशासक को मुख्यमंत्री नियुक्त करेंगे और जिला जूरी प्रशासक को उस जिले के नागरिक बदल सकते हैं.
जज सिस्टम में, केवल कुछ गिनती के जज ही सभी कोर्ट के फैसले करते हैं जबकि जूरी सिस्टम में फैसले करने वाले व्यक्ति 12-15 गुना अधिक नहीं बल्कि हजारों गुना अधिक होते हैं. कैसे ? जज सिस्टम में, मान लीजिए कि एक जज 30 वर्ष के लिए कार्य करता है और एक वर्ष में 100 मुकदमों का फैसला करता है ; यानी अपने पूरे कार्यकाल में एक जज लगभग 3000 मुकदमों का फैसला करता है. जूरी सिस्टम में इन मुकदमों का फैसला कुछ 36,000 लोग करेंगे | तो फैसला करने वाले व्यक्तियों की संख्या 36000 गुना बढ़ी, ना कि केवल 12 गुना !!
तो जज सिस्टम में, भ्रष्ट को लाभ होता है क्यूंकि उनको केवल कुछ सौ लोगों को ही रिश्वत देनी होती है या उन्हें संभालना होता है ( उन लोगों के रिश्तेदारों को अपना वकील बनाकर). जूरी सिस्टम में, भ्रष्ट को जिन लोगों को रिश्वत देनी है, उनकी गिनती करोड़ों में जायेगी; इतने लोगों को संभाल पाने की संभावना लगभग शून्य है.
इसीलिए, हम ये समाधान बताते हैं कि जज सिस्टम को समाप्त करके निचली अदालत, हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में भी जूरी सिस्टम का प्रयोग करना चाहिए. जूरी सिस्टम यदि लागू है तो भ्रष्ट के लिए कोर्ट में रिश्वत या उपहार देकर अपना कार्य निकालना असंभव हो जायेगा | इसके अलावा, जूरी सिस्टम प्रशासन में अन्याय और भ्रष्टाचार को भी कम करेगा और इससे भी बलात्कार, यौन अत्याचार और झूठी शिकायतें में कमी आएगी
(प्रक्रिया-ड्राफ्ट देखें यहाँ)
B1.3 जूरी की सहमति से पब्लिक में नारको जांच झूठे शिकायतों की सम्भावना कम करती है – बलात्कार हुआ है या नहीं, ये सिद्ध करने के लिए, बालात्कार के आरोपी पर पब्लिक में नारको जांच होनी चाहिए, इसका निर्णय जूरी को बरामद सबूत देखने के बाद करना चाहिए.
नारको जांच एक सुरक्षित प्रक्रिया है जिसमें डॉक्टर की देख-रेख में, थोड़ी सोडियम पेंटा-थेनोल की दवा दी जाती है व्यक्ति के दिमाग के योजना बनाने वाले केन्द्र को थोड़ी देर दबाने के लिए, ताकि व्यक्ति योजना बनाकर पूछे गए प्रश्नों का उत्तर न दे. अन्य जांच के साथ नारको जांच में महत्वपूर्ण सुराग मिलते हैं, जिससे और जांच करने पर सबूत मिल सकते हैं. ये सिद्ध करने के लिए कि बलात्कार या यौन अत्याचार किया गया था कि नहीं, जूरी के सहमति से बलात्कार आरोपी पर पब्लिक में नारको होना चाहिए . जूरी पब्लिक में नारको करवाने के लिए अपनी सहमति / असहमति कुछ प्रथम दृष्टया (पहली दृष्टि के) सबूत देखने के बाद करेगी.
1. बलात्कार के सभी मामलों में सुनवाई जूरी और केवल जूरी द्वारा ही की जाएगी । जूरी में जिलों से क्रमरहित तरीके से चुने गए 30 वर्ष और 60 वर्ष के बीच के उम्र के 15 से 1500 नागरिक होंगे । इन चुने गए नागरिकों में से कम से कम 50% महिलाएं होंगी.
2. यदि आरोपी चाहता हो या बहुमत जूरी सदस्य यदि जरूरी समझते हों कि आरोपी पर सच्चाई सीरम जांच (नार्को जाँच) की जानी चाहिए, तो जांच अधिकारी मुलजिम पर सच्चाई सीरम जांच करेगा.
3. यदि शिकायतकर्ता चाहता हो या बहुमत जूरी सदस्य यदि जरूरी समझते हों कि शिकायतकर्ता पर सच्चाई सीरम जांच की जानी चाहिए, तो जांच अधिकारी शिकायतकर्ता पर सच्चाई सीरम जांच करेगा
पब्लिक में नार्को जांच के बारे में अधिक जानकारी के लिए, कृपया लिंक देखें यहाँ
बलात्कार की सुनवाई में सच्चाई सीरम जांच अनिवार्य (जरूरी) है क्योंकि दोनों में से कोई भी पक्ष झूठ बोल सकता है और ज्यादातर सबूत ज्यादातर अधूरे होते हैं. वे ज्यादा से ज्यादा यह बता सकते हैं कि (शारीरिक) संबंध बने हैं लेकिन जोर जबरदस्ती या धमकी के प्रयोग को प्रमाणित नहीं करते. वर्तमान कानूनों में सच्चाई सीरम जांच के लिए जज की अनुमति की जरूरत होती है और चूंकि जज अनुमति नहीं भी दे सकते हैं इसलिए अपराधी अकसर छूट जाते हैं.
इसलिए, सच्चाई सीरम जांच का निर्णय जूरी पर छोड़ दिया जाना चाहिए । यह वर्तमान कानून गलत है कि महिला की गवाही ही अंतिम मानी जायेगी और इसे बदलकर इसके स्थान पर सच्चाई सीरम जांच (नार्को जांच) को अनिवार्य (जरूरी) किया जाना चाहिए. भारत में बलात्कार के मामलों और झूठी शिकायतों को रोकने में तकनीकी साधन और सच्चाई सीरम जांच का प्रयोग मजबूत साधन बनेगा.
B1.4 महिलाओं के विरुद्ध अपराध के लिए जिला पोलिस कमिश्नर और जिला प्रधान जज के ऊपर राईट टू रिकॉल :
नौकरी जाने के डर से 99% अफसर अपना व्यवहार और काम सुधार देते हैं और बाकी 1% अफसर जो अपना व्यवहार और कार्य नहीं सुधारते, तो आम-नागरिक उन अफसरों को अधिक अच्छे अफसरों से बदल देंगे.
हर जिले में एक सहायक (डिप्टी) पुलिस कमिश्नर होना चाहिए जो महिलाओं के विरुद्ध अपराध मामलों का प्रभारी हो और उस जिले की महिलाओं को उस डिप्टी पुलिस कमिश्नर को बदलने का अधिकार होना चाहिए.
हर जिले में 3 जज के पास महिलाओं के विरुद्ध मामले होने चाहिए और उस जिले के महिलाओं के पास उन जज को बदलने का अधिकार होना चाहिए.
(प्रक्रिया-ड्राफ्ट के लिए देखें – अध्याय 22, 7, smstoneta.com/prajaadhinbharat)
B1.5 हर मामले की रोज की करवाई को, गुप्त जानकारी हटाकर, इन्टरनेट पर डालना चाहिए
इस प्रकार नागरिक को ये पता चलेगा कि जज कितनी तेजी से या धीमे से कोर्ट मामले का फैसला करते हैं. अक्सर जज उन मामलों में तेजी करते हैं, जिनका मीडिया में प्रचार होता है और बाकी सब मामलों में देरी करते हैं. मीडिया सारे मामलों का प्रचार नहीं कर सकता और मीडिया तो बिकाऊ होता है. जब आरोपी धनी होता है, तो मीडिया अक्सर प्रचार नहीं करता. लेकिन यदि सभी मामले इन्टरनेट पर आयें, तो जजों की जान-बूझ कर मामलों का लटकाना सबको प्रमाण के साथ पता चलेगा.
B2. बलात्कार और झूठी शिकायतें कम करने के तकनीकी साधन
ये निम्नलिखित तकनीकी साधन बलात्कार, झूठी शिकायतें आदि को कम करने के लिए तभी पर्याप्त होंगे जब पहले बताये गए प्रशासनिक साधन लागू किये गए हों ; बिना नागरिक-प्रामाणिक प्रशासनिक तरीकों के ये तकनीकी साधन फेल हो जायेंगे.
B2.1 जितनी ज्यादा सार्वजनिक जगहों पर संभव हो सके, उतनी जगहों पर कैमरे लगाना चाहिए :
जितना अधिक संभव हो सके उतने कैमरे लगाकर हम बलात्कार और बस अड्डों / स्टॉपों बसों के भीतर और अन्य भीड़-भाड़ वाली सार्वजनिक जगहों पर छेड़छाड़ की घटनाओं को कम कर सकते हैं । एक उदहारण चीन का बेजिंग है. ओलम्पिक खेल के समय, चीनी सरकार ने आतंकवाद को रोकने के लिए पूरे बेजिंग शहर में कोने-कोने में दस लाख कैमरे लगाये थे. ये कैमरे लगाने से यौन अत्याचार और यातायात नियम तोडना भी कम हुआ. गुजरात में मोदी सरकार ने भी दंगे वाले जगहों में और उन जगह में घूमती पूलिस जीपों में भी कैमरे लगवाये थे. जिससे उन जगहों पर दंगों में कमी आई थी.
B2.2 हरेक महिला को खतरे का संकेत देने वाले, बटन वाला मशीन देना :
हरेक महिला को एक ऐसी मशीन दी जा सकती है जिसका बटन दबाने पर लगातार महिला के आस-पास की आवाज किसी कंट्रोल स्टेशन पर भेजी जायेगी और वो मशीन शुरू होने के बाद तब तक बन्द नहीं की जा सकेगी जब तक उसे तोड़ा नहीं जाये. इसके अलावा, इस मशीन में खतरे का (पैनिक) बटन लगाया जा सकता है. जब इस बटन को दबाया जाएगा तो यह खतरा का (पैनिक) बटन नजदीक के किसी फोन टावर के साथ-साथ पुलिस स्टेशनों को खतरे का संकेत भेजेगा.
तकनीकी तरीकों से उस स्थान का भी पता लगाया जा सकता है कि महिला किस जगह पर है, जिससे कि पुलिस को कम समय में पहुँचने और मदद करने में आसानी हो.
B2.3 महिलाओं और आम-नागरिकों को अपनी सुरक्षा के लिए बंदूकें देना :
महिलाओं को बंदूकें और दूसरे हथियार रखने की अनुमति दी जानी चाहिए । सुरक्षा के लिए हथियार रखने के लिए कोई लाइसेंस की जरुरत नहीं होनी चाहिए, केवल पंजीकरण करवाना जरुरी होना चाहिए. और उन्हें इन हथियारों आदि को चलाने की ट्रेनिंग दी जानी चाहिए. हथियार चलाने की ट्रेनिंग होने के बाद महिलाओं को एक पंजीकृत सुरक्षा के लिए हथियार दिया जाये. शुरुआत में, स्कूल की बारवीं कक्षा समाप्त होने के बाद एक साल की आवश्यक / अनिवार्य सैनिक ट्रेनिंग होनी चाहिए और ये सैनिक ट्रेनिंग किसी भी कोलेज में भर्ती होने के लिए आवश्यक होनी चाहिए. बाद में, दूसरे नागरिकों के लिए हथियार चलाने के ट्रेनिंग के केन्द्र शुरू किये जा सकते हैं.
इसके पर्याप्त सबूत हैं कि बंदूकें अपराध कम करते हैं और `बंदूकों पर रोक` जानलेवा है | और इसके विपरीत दावों के लिए कोई भी ठोस प्रामाण नहीं है. इसकी अधिक जानकारी के लिए लिंक देखें – यहाँ
B2.4 राष्ट्रीय डी.एन.ए. आंकड़ा कोष (डाटाबेस) :
सभी पुरूषों के डी.एन.ए. का आंकड़ा कोष (डाटाबेस) तैयार करना बलात्कार के आरोपियों को कम लागत में और तेज गति से पकड़ने/खोज निकालने में उपयोगी होगा. पकड़े/खोज निकाले जाने का डर आरोपियों को बलात्कार करने से रोकेगा.
C. बलात्कार, यौन उत्पीडन, झूठी शिकायतों की समस्याओं की अधिक जानकारी और कुछ मिथ्यों (झूठी बात) की सच्चाई
C1. दिल्ली बस रेप काण्ड –
यदि कोई भी व्यक्ति दिसम्बर 2102 में हुए “दिल्ली बस रेप काण्ड” के मुख्य आरोपी राम आधार सिंह के आपराधिक इतिहास की ओर देखेगा, तो उसे पता चलेगा कि वह पहले भी कई छोटे-बड़े हिंसक अपराध कर चुका था और उसके कुछ अपराधों की शिकायत भी दर्ज की गई थी. लेकिन वह अपने पिछले सभी मामलों से बच निकला था जिससे उसकी और उसके साथियों की और अधिक अपराधो को करने की हिम्मत बढ़ गई थी.
यदि अदालतें उसके पहले के आपराधिक मामलों को लेकर सीरियस (गंभीर)) रहते, तो उसे (राम आधार सिंह को) जरूर कुछ महीने या वर्षो की कैद की सजा होती.
अब यदि पीड़ित पैसे-वाला न हो तो आजकल अदालतें छोटे अपराधो में सजा देती ही नहीं हैं और मामले को रफा-दफा करने में लगी रहती हैं | इसका मुख्य कारण यही है कि – जज भ्रष्ट है, सरकारी वकील भ्रष्ट है और जांच-कर्ता (पुलिस) भी भ्रष्ट हैं. और हाई कोर्ट के जज तो और भी अधिक भ्रष्ट हैं, जिन्हें सिर्फ उन्हीं मामलों में दिलचस्पी होती है जिनसे उन्हें या उनके रिश्तेदार वकील को पैसा मिल सके या उन्हें नौकरी में प्रमोशन मिल सके और उन्हें निचली अदालतों के बुनियादी ढ़ाचे सुधारने में बिलकुल भी दिलचस्पी नहीं होती है.
कानून मंत्रालय में भ्रष्टाचार होने से समस्या और भी बिगड़ गई है. कानून मंत्री और कानून मंत्रालय के आई.ए.एस (IAS) अधिकारियों को भी निचली अदालतों की संख्या बढ़ाने और न्यायिक फैसलों की गति, न्याय और पारदर्शिता बढ़ाने में कोई दिलचस्पी नहीं है. और कोई भी मुख्यमंत्री अपनी इच्छा से कोर्ट के फैसलों में हो रहे देरी और अदालतों की व्यवस्था सुधारना नहीं चाहता.
C2. आज सच्चाई यही है : पुलिस सिर्फ नेताओं के लिए है, आम नागरिकों के लिए नहीं
कार्यकर्ताओं और आम लोगों को अब यह चुनाव करना है कि क्या वे नेताओं की अंधभक्ति चालू रखना चाहते हैं या कुछ ऐसा करना चाहते हैं जिससे नागरिक मजबूत हों – जैसे नागरिकों को छोटी-मोटी बन्दूक रखने का अधिकार हो ताकि वह अपराधियों से अपनी सुरक्षा कर सकें | अपराधियों के पास पहले से ही बन्दूके हैं. आज के हथियार रखने के कानून अपराधियों को बन्दूके रखने से नहीं रोकते बल्कि आम नागरिकों को अपनी आत्म-रक्षा करने से रोकते हैं.
पुलिस सिर्फ नेताओं की ही सुरक्षा करती है, वह नागरिकों की सुरक्षा न करती है और न कर सकती है. जबकि अपराधियों के पास ए.के.-47 है, ज्यादातर नेता और उनके अंधभक्त इस बात पर ज़ोर देते हैं कि आम नागरिकों’ के पास अपनी आत्म-रक्षा के लिए देसी कट्टा रखने का भी अधिकार नहीं होना चाहिए.
C3. बिना जूरी प्रणाली और जूरी की सहमती से अपराधियों का पब्लिक में नारको टेस्ट किए बिना, कोई भी `सख्त` कानून का बुरा प्रभाव होगा
भ्रष्ट जज, पोलिस और नेता ऐसे कानून का दुरूपयोग करके आरोपी से पैसा निकालने में लग जाएँगे भले ही वह दोषी हो या निर्दोष.
हमें गंभीर मामलों में अपराधियों को फांसी या सख्त सज़ा देनी चाहिए परन्तु जूरी के सहमति द्वारा आरोपी का पब्लिक में नारको टेस्ट करवाने और जूरी के फैसले के बाद ही सजा होनी चाहिए.
हमें किसी को फांसी या सख्त सजा की अनुमति सिर्फ इस आधार पर नहीं देनी चाहिए क्योंकि किसी जज ने ऐसा निर्णय लिया है. क्योंकि निचली अदालत, हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट के 99% जज भ्रष्ट होते हैं. यदि फांसी या सख्त सज़ा देने का अधिकार हम जजों पर छोड़ देते हैं, तो यह जज अपने वकीलों के माध्यम से आरोपी से पैसा ऐंठेंगे, भले ही वह दोषी हो या बेगुनाह | जज फर्जी मुकदमों को बढ़ावा देंगे और लोगों को चारों तरफ से लूटेंगे.
उदाहरण – 498A का कानून देखें | इन मामलों में जज और उनके रिश्तेदार वकील सीधे तौर पर आरोपियों को ठगते हैं, भले ही वह दोषी हो या बेगुनाह और हर साल हजारों करोड़ आरोपियों को ठग लेते हैं | और 498A में सजा भी 3 से 7 साल तक की कैद है, अब सोचिये यदि सजा फांसी तक की होती, तो जज और उनके रिश्तेदार वकील आरोपियों से कितना पैसा बना लेते ?
इसलिए हमें सख्त कानूनों को बढ़ावा देना चाहिए लेकिन जूरी की अनुमति द्वारा आरोपी का पब्लिक में नारको टेस्ट लेने के बाद सजा का निर्णय होना चाहिए, नाकि सिर्फ भ्रष्ट जजों पर निर्भर होकर सजा होनी चाहिए.
C4. जूरी मुकदमा / ट्रायल की जरुरत है बजाए “फास्ट ट्रैक कोर्ट” की –
हमें जूरी द्वारा किए गए मुकदमों की आवश्यकता है यदि हम चाहते हैं कि मुकदमें तेज़ गति व अन्याय किए बिना निपट सके. क्योंकि जूरी के पास केवल एक ही मुकदमा होता है, इसलिए बिना किसी अन्य मुक़दमे के अवरोध के मुकदमा सुबह 10 बजे से श्याम 5 बजे तक चलता है.
इसके अलावा, हमें सांसदों को मोबाइल द्वारा सन्देश (एस.एम.एस) भेजना चाहिए कि वह आई.पी.सी (IPC) में बदलाव करें और ऐसे मामलों में अधिकतम सजा (मृत्यु दंड का प्रावधान) रखें जहाँ – (1) हिंसा (मार-धार) से गंभीर, जान ले सकने वाली चोटें आई हों, और (2) बलात्कार के साथ हत्या करने का प्रयास किया गया हो.
C5. चरित्र निर्माण के उपदेश – बिना अच्छे कानूनों और अच्छे सिस्टम की मोजूदगी में उपदेश बलात्कार और योन अत्याचार के मामले काम नहीं करेंगे –- समाज में नैतिकता (इमानदारी) के लिए पहला कदम है नैतिक (ईमानदार) कानूनों का होना
1. क्यों आज हमें नैतिक (ईमानदार) सिस्टम की ज़रूरत है और केवल नैतिकता (इमानदारी) पर उपदेश पर्याप्त नहीं है –
ऐसा कहा जाता है कि हज़ारों साल पहले, माहावीर आदि जैसी पुन्य आत्माएं रहा करती थीं | जिनकी उपस्तिथि से मांसाहारी प्राणी भी हिंसा (मार-धार) नहीं करते थे . लोग कभी अपने दरवाजों पर ताला नहीं लगाते थे, चोरी नहीं किया करते थे आदि., मतलब सम्पूर्ण नैतिकता थी. .
अब समय के साथ, जनसँख्या बढ़ने से जीवन में परिवर्तन और अन्य कारणों (जो इस लेख के विषय से परे (बाहर) हैं) से लोगों में नैतिकता का लैवल कम होने लगा था | अब, जब नैतिकता बड़े स्तर पर गिरने लगी, तो अनैतिक (बेईमान) प्राणियों ने नैतिक (ईमानदार) प्राणियों को लूटना शुरू कर दिया और नैतिक प्राणी अनैतिक प्राणियों को नैतिकता का पाठ पढ़ाने में असफल रहे | अनैतिक प्राणी ताकत हासिल करने में सफल रहे और सांठ-गांठ, भाई-भतीजावाद द्वारा, सच्चाई छुपा कर, नागरिकों का मत दबा कर और हथियारों द्वारा दूसरों को शारीरिक नुक्सान पंहुचा कर सत्ता के सबसे ऊंचे पद हासिल करने लगे.
इसलिए, नैतिक (ईमानदार) प्राणियों ने नैतिक (ईमानदार) सिस्टम / व्यवस्थाओं को बनाया जैसे दरवाजों पर ताले लगा कर स्वयं की रक्षा करना आदि | क्योंकि यदि 1% अनैतिक प्राणियों का भी अस्तित्व होगा (मौजूदगी होगी), तो वह सांठ-गांठ करेंगे और नैतिक प्राणियों को लूटेंगे.
पुरातन काल (पुराने जमाने) में, अन्य ईमानदार सिस्टम द्वारा राष्ट्र के सबसे ऊंचे पदों पर बैठे अनैतिक (बेईमान) प्राणियों को सजा दी जा रही थी और नैतिक (सामान्य) प्राणियों द्वारा अनैतिक लोगों को बदला जा रहा था (अर्थात वेदों में बताये गए प्रजा आधीन राजा) | दूसरे प्रक्रियाओं जैसे जनता के बीच पोल खोलना और हथियारों द्वारा आत्म-रक्षा करना, ऐसी प्रक्रियाएँ द्वारा भी नैतिक (ईमानदार) लोगों ने अनैतिक लोगों को अनैतिकता से रोका |
इसलिए, जब तक हम स्वयं और सभी अनैतिक (बेईमान) जीवों में नैतिकता (इमानदारी) नहीं भर देते, तब तक हमें नैतिक व्यवस्थाओ (ईमानदार सिस्टम) की ज़रूरत पड़ेगी | हम अपने दरवाज़े बिन ताले के खुला नहीं छोड़ सकते और ईमानदार लोगों को आत्म-रक्षा के लिए हथियार की भी आवश्यकता पड़ेगी | एक ऐसे सिस्टम की आवश्यकता है जिससे सांठ-गांठ, भाई-भतीजावाद, पक्षपात को प्रजा आधीन राजा द्वारा कम किया जा सके, मतलब ऐसी व्यवस्था जिससे प्रशासकों को नागरिकों द्वारा बदला जा सके, सजा दी जा सके | ऐसे सिस्टम को हम कहते हैं – सेंसर बोर्ड प्रमुख, जज, मुख्यमंत्री, विधायक आदि पर राईट टू रिकॉल और जूरी द्वारा मुकदमा |
और, हमें ऐसी नागरिक-प्रामाणिक प्रक्रियाएँ भी चाहिए जिसमें नागरिक स्वयं सच और झूठ का पता लगा सके, जिसमें नागरिकों के पास विकल्प हो कि वह सबूतों को एफिडेविट के रूप में, अपने मतदाता पहचान पत्र नंबर के साथ प्रधानमंत्री वेबसाईट पर स्कैन करा सकें ताकि वो एफिडेविट सब लोगों को दिखाई दे सके बिना लॉग-इन किए | इससे नागरिक बेईमान लोगों को सबूतों को दबाने से रोक सकेंगे, ऐसे सिस्टम को हम कहते – नागरिक-प्रामाणिक, पारदर्शी शिकायत प्रणाली (टी.सी.पी.) मीडिया पोर्टल.
हम नैतिकता (इमानदारी) पर उपदेश देने का विरोध नहीं करते लेकिन यह उम्मीद करना कि उपदेशों से ईमानदार प्राणियों की बेईमान प्राणियों से सुरक्षा हो जाएगी, दिन में सपने देखने जैसा होगा | जब तक हमारे पास ऐसी प्रक्रियाएँ न हों जिनसे हम अनैतिक (बेईमान) लोगो की जनसँख्या 1% या उससे भी कम, या इस हद तक कम नहीं कर देते कि अनैतिक प्राणी सांठ-गांठ करके नैतिक प्राणियों को ना लूट सकें, केवल उपदेश पर्याप्त नहीं हैं |
इसलिए आज हमारा तुरंत और पहला नैतिक (ईमानदार) कदम यह होना चाहिए कि अनैतिक लोगों से नैतिक सिस्टम द्वारा सुरक्षा करना – जनता को ताकतवर बनाना इन साधनों द्वारा – नागरिकों को बन्दूक से लेकर भ्रष्ट लोगों को बदलने / सज़ा देने का अधिकार देकर और नागरिक द्वारा जमा किये गए सबूत जनता देख सके और जांच सके बिना सबूतों से छेड़-छाड़ किए या उन्हें दबाए बिना |
मुख्य बात यह है कि लोग अनैतिक या बेईमान हो सकते हैं लेकिन व्यवस्था को ईमानदार और न्याय वाला बनाया जा सकता है | क्या हम ईमानदार सिस्टम को बढ़ावा दे रहे है ? यदि नहीं, तो एक तरह से हम जाने / अनजाने में आज के बेईमान सिस्टम, अन्याय को बढ़ावा दे रहे हैं.
2. आज के भ्रष्ट सिस्टम नागरिकों को गलत सीख और शिक्षा देते हैं — उपाय
आज के भ्रष्ट सिस्टम से नागरिकों को ये शिक्षा मिलती है कि गलत कार्य लो और आसानी से सबूत दबवा दो तो किसी को भी पता नहीं चलेगा. आज ये शिक्षा मिलती है कि गलत कार्य करने पर सांठ-गांठ बना कर कोई भी सजा से बच सकता है और उसकी नौकरी भी सुरक्षित रहेगी.
आज गवाह को सालों-साल कोर्ट-कचेहरी के चक्कर काटने पड़ेंगे और फिर भी न्याय नहीं होगा और वो अपना परिवार के प्रति धर्म सही से नहीं निभा पायेगा. इसिलए बहुत कम लोग गवाह बनने के लिए तैयार होते हैं.
उपाय ये ही है कि हम एक ईमानदार, नागरिक-प्रमाणिक सिस्टम लायें जो सही शिक्षा दे कि गलत कार्य करने पर टी.सी.पी. के द्वारा उसके खिलाफ सबूत डाला जा सकता है और वो समाज में बदनाम होगा. राईट टू रिकॉल की प्रक्रिया होगी तो उसकी नौकरी जायेगी और जूरी सिस्टम होने पर आम-नागरिक उसको कुछ ही समय में सजा भी देंगे यदि नागरिक गलत कार्य करता है. इसीलिए, हमें ईमानदार सिस्टम की मांग करके उन्हें लागू करवाना चाहिए.
D. दहेज-मृत्यु और दहेज-उत्पीड़न (अत्याचार) कम करना
दहेज-मृत्यु और दहेज-उत्पीड़न सम्बंधित मामलों में मुकद्दमों के लिए हम नीचे बताए परिवर्तन का प्रस्ताव करते हैं :
- दहेज-मृत्यु और दहेज-उत्पीड़न सम्बंधित सभी मामलों का निर्णय केवल और केवल जूरी-सदस्यों द्वारा किया जायेगा. जूरी-मंडल में सम्बंधित जिले से 35 और 55 साल के बीच में 25 नागरिक क्रम-रहित तरीके से चुने जायेंगे और उनमें कम से कम 13 महिलाएं होंगी.
- यदि आरोपी स्वयं चाहता है या यदि 25 में से 18 जूरी-सदस्य को जरूरी लगता है कि आरोपी पर नार्को-जांच होनी चाहिए, तो जांच करने वाला अफसर आरोपी पर नार्को जांच करेगा
- यदि शिकायतकर्ता चाहता है, तो जांच करने वाले अफसर शिकायतकर्ता पर नार्को-जांच करेंगे. शिकायतकर्ता को उसकी मर्जी के विरुद्ध नार्को-जांच करवाने के लिए तब तक नहीं कहा जायेगा जब तक 25 में से 18 जूरी-सदस्य शिकायतकर्ता पर नारको-जांच करवाने के लिए नहीं कहते.
E. ऑफिस में यौन-उत्पीड़न (अत्याचार) मामले कम करना
- सभी यौन-उत्पीड़न मामलों का निर्णय केवल और केवल जूरी सदस्यों द्वारा किया जायेगा. जूरी-मंडल में सम्बंधित जिले से 35 और 55 साल के बीच में 25 नागरिक क्रम-रहित तरीके से चुने जायेंगे और उनमें कम से कम 13 महिलाएं होंगी.
- यदि आरोपी स्वयं चाहता है या यदि 25 में से 18 जूरी-सदस्य को जरूरी लगता है कि आरोपी पर नार्को-जांच होनी चाहिए, तो जांच करने वाला अफसर आरोपी पर नार्को जांच करेगा.
- यदि शिकायतकर्ता चाहता है, तो जांच करने वाले अफसर शिकायतकर्ता पर नार्को-जांच करेंगे. शिकायतकर्ता को उसकी मर्जी के विरुद्ध नार्को-जांच करवाने के लिए तब तक नहीं कहा जायेगा जब तक 25 में से 18 जूरी-सदस्य शिकायतकर्ता पर नारको-जांच करवाने के लिए नहीं कहते.
- नियोक्ता (मालिक) सभी कर्मचारियों को फोन देने का प्रयास करेंगे और आग्रह करेंगे कि कर्मचारी आपस में चर्चा इन कंपनी के फोन द्वारा ही करें. नियोक्ता फोन कंपनियों को कर्मचारियों के बीच इन चर्चाओं को रिकोर्ड करने के लिए कह सकते हैं. इस प्रकार, बात-चीत के रिकोर्ड जूरी-सदस्य के लिए लाभदायक हो सकते हैं.
ऊपर बताये गए कानून शिकायतों को कैसे रोकेंगे ? सबसे पहले, नार्को-जांच का डर ही व्यक्ति को अपराध करने से रोकेगा.
F. झूठी शिकायतों की संभावनाएं कम करना
आरोपी का नार्को-जांच झूठी शिकायतें कम करेगा. इसके अलावा, यदि जूरी-सदस्यों को लगता है कि आरोपी निर्दोष है तो वे शिकायतकर्ता को भी नार्को-जांच करने के लिए कह सकते हैं. शिकायतकर्ता नार्को-जांच करवाने की स्वीकृति देता है या मना करता है, जूरी-सदस्य अपना निर्णय उसी अनुसार करेंगे. और जूरी-मंडल झूठी शिकायतों की सम्भावना पर निर्णय करने के लिए एक दूसरी जूरी को भी बुलवा सकेगी .
G. विवाह करने के वायदे को तोड़ना
वर्तमान कानून “लगभग” ये बोलता है कि यदि एक पुरुष ने विवाह का वायदा करके एक महिला के साथ यौन-सम्भोग किया है और फिर बाद में अपना वायदा तोड़ देता है, तो उसे “अक्सर” बलात्कार समझा जाता है. हम “लगभग” शब्द का प्रयोग इसलिए कर रहे हैं क्योंकि कानून और सम्बंधित फैसले विवाह का वायदा
क्या होता है इसपर स्पष्ट नहीं हैं.
और हम “अक्सर” शब्द का प्रयोग इसीलिए करते हैं क्योंकि ऐसे मामलों में कोर्ट के फैसले समानरूप नहीं रहे हैं. टी.सी.पी. मीडिया पोर्टल का प्रयोग करके, हमें एक वैध विवाह का वायदा
में क्या आता है, उसको परिभाषित करना होगा और ये भी निर्णय करना होगा कि ऐसे वायदे का पालन नहीं करने के लिए क्या सजा होनी चाहिए. और ऐसे मामलों में अंतिम फैसला जूरी-सदस्य करेंगे.